जिस शरीर में स्थित किन्हीं जीवों के किसी भी काल में पीड़ा, मरण आदि संभव है, वह शरीर अध:कर्म शरीर कहलाता है ।
बंध रूप हुई प्रकृतियों के परमाणुओं का अपने बन्ध में संभवती प्रकृतियों में जो प्रदेश संक्रमण होता है उसे अधःप्रवृत्त संक्रमण कहते हैं। प्रकृतियों के बंध होने पर अपनी-अपनी बंध व्युच्छित्ति पर्यन्त अधः प्रवृत्त संक्रमण होता है परन्तु मिथ्यात्व प्रकृति …
उपशम चरित्र के सम्मुख वेदक सम्यग्दृष्टि जीव (अप्रमत्त गुणस्थान में) अनन्तानुबंधी की विसंयोजना करके अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त अधः प्रवृत्त अप्रमत्त संयत कहलाता है। चारित्र मोह के उपशमन में अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण आदि आठ अधिकार होते हैं उनमे से जो अधःप्रवृत्तकरण …
प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने वाले जीव के अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण- ये तीन विशिष्ट निर्जरा के साघनभूत विशुद्ध परिणाम होते हैं। प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन प्राप्त करने वाला भव्य जीव आयु कर्म को छोड़कर शेष कर्मों की स्थिति को अंतः कोड़ा …
जो ठहरते हुए जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक होता है उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । यह द्रव्य समूचे लोक में व्याप्त है। यह अचेतन और अरूपी है। इसका कार्य वृक्ष की छाया की तरह है जो राहगीर …