दो पक्ष का एक मास होता है, दो माह की एक ऋतु होती है और तीन ऋतुओं का एक अयन होता है और एक संवत्सर (वर्ष) में दो अयन होते हैं। पाँच वर्ष का एक युग होता है।
जिस कर्म के उदय से किसी जीव के विद्यमान या अविद्यमान अवगुणों की चर्चा लोक में होने लगती है उसे अयश-कीर्ति- नामकर्म कहते हैं।
तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोग केवली भगवान जब अपने जीवन के अंतिम क्षणों में विशुद्ध ध्यान के द्वारा मन-वचन-काय की समस्त क्रियाओं का निरोध कर देते हैं तब योग से रहित इस अवस्था में वे अयोग- केवली – जिन कहलाते हैं। यह …