अधःप्रवृत्त संयत
उपशम चरित्र के सम्मुख वेदक सम्यग्दृष्टि जीव (अप्रमत्त गुणस्थान में) अनन्तानुबंधी की विसंयोजना करके अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त अधः प्रवृत्त अप्रमत्त संयत कहलाता है। चारित्र मोह के उपशमन में अधःप्रवृत्तकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण आदि आठ अधिकार होते हैं उनमे से जो अधःप्रवृत्तकरण अप्रमत्तसंयत है, वही सातिशय अप्रमत्त कहलाता है। जिस प्रकार कि प्रथमोपशम सम्यक्त्व के सम्मुख जीव सातिशय मिथ्यादृष्टि कहलाता है।