दुख, संकट, दंगा या संक्रामक रोग होना ईति कहलाता है। ईति सात प्रकार की होती है- अतिवृद्धि, अनावृष्टि, टिड्डी दल, प्लेग, तोते, हैजा (कालरा) तथा बाह्य आक्रमण |
जिन कर्मों का आस्रव होता है पर बन्ध नहीं होता उन्हें ईर्यापथ कर्म कहते हैं। आने के अगले क्षण में ही बिना फल दिये वे झड़ जाते हैं अतः इनमें एक समय मात्र की स्थिति अधिक नहीं मोह का सर्वथा …