अकाल नय
अकालनय से जिसकी सिद्ध भेद हैंव्यक्त और अव्यक्त | व्यक्त निर्वृत्यक्षर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक के ही होता है और अव्यक्त निर्वृत्यक्षर द्वि-इन्द्रिय से लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक तक जीवों के होता है। जघन्य निर्वृत्यक्षर द्विन्द्रिय पर्याप्तक आदि जीवों के होता है और उत्कृष्ट चौदह पूर्वधारी के होता है। आशय यह है कि कंठ, औंठ, तालु आदि के परस्पर मिलने से उत्पन्न स्वर (अ, आ), व्यंजन (क, ख) व अन्य संयोगी अक्षरों को निर्वृत्यक्षर कहते हैं। पुस्तक आदि में जो देश काल के अनुसार अ, ब, स आदि का निश्चित आकार लिखा जाता है वह संस्थानाक्षर कहलाता है। संक्षिप्त शब्द रचना वाले और अनन्त अर्थों का ज्ञान कराने वाले बीजाक्षर कहलाते हैं।