पर्याप्तक
जिस प्रकार गृह वस्त्रादि अचेतन पदार्थ पूर्ण और अपूर्ण दोनों प्रकार के होते हैं उसी प्रकार जीव भी पूर्ण व अपूर्ण दोनों प्रकार के होते हैं । जो जीव पर्याप्त नामकर्म के उदय से अपने योग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण कर लेते हैं वे पर्याप्तक कहलाते हैं, जो अपर्याप्तक नामकर्म के उदय से पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं कर पाते वे अपर्याप्तक कहलाते हैं ।