अंग प्रविष्ट
आचारांग आदि बारह प्रकार का (द्वादशांग) जो श्रुतज्ञान है उसे अंग प्रविष्ट कहते हैं। आचारांग, सूत्रकृत्रांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृ-धर्मकथा, उपासकाध्ययन अन्तकृद्दशांग, अनुन्तरोपपा- दिक दशांग, प्रश्न व्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद ये अंग प्रविष्ट के बारह भेद हैं। ‘दृष्टिवाद’ नामक बारहवें अंग प्रविष्ट श्रुतज्ञान के पाँच भेद हैं- परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत एवं चूलिका । इसमें से पूर्वगत के चौदह भेद हैं— उत्पाद पूर्व, अग्रायणीय पूर्व, वीर्यानुवाद पूर्व, अस्तिनास्ति प्रवाद, ज्ञान प्रवाद, सत्य प्रवाद, आत्म प्रवाद, कर्म प्रवाद, प्रत्याख्यान नामधेय, विद्यानुवाद, कल्याण नामधेय, प्राणावाय, क्रियाविशाल और लोकबिंदुसार।