जिसके द्वारा देखे या सुने गए पदार्थों का स्मरण होता है वह मन है अथवा जो गुण दोषों का विचार व स्मरण आदि देखे जाते हैं वे मन के ही कार्य हैं नाना प्रकार के विकल्प जाल को मन कहते …
जिस कर्म के उदय से जीव के मनःपर्यय ज्ञान प्रगट नहीं हो पाता वह मनःपर्यय ज्ञानावरण कर्म है।
दूसरे के मनोगत अर्थ को जानना मनःपर्ययज्ञान है। दूसरे के मानस को जानकर यह मनःपर्यय ज्ञान काल से विशेषित दूसरों की संज्ञा ( शब्द कलाप), स्मृति (अतीतकालगत दृष्ट, श्रुत व अनुभूत विषय) मति (अनागत कालगत विषय), चिन्ता ( वर्तमान कालगत …
अनुभूत अर्थ के स्मरण रूप शक्ति के निमित्तभूत मनोवर्गाणाओं के स्कन्धों से निष्पन्न पुद्गल प्रचय को मनःपर्याप्ति कहते हैं। अथवा द्रव्य मन के अवलम्बन से अनुभूत अर्थ के स्मरण रूप शक्ति की उत्पत्ति को मनःपर्याप्ति कहते हैं। मनो वर्गणा रूप …