मन
जिसके द्वारा देखे या सुने गए पदार्थों का स्मरण होता है वह मन है अथवा जो गुण दोषों का विचार व स्मरण आदि देखे जाते हैं वे मन के ही कार्य हैं नाना प्रकार के विकल्प जाल को मन कहते हैं अनिन्द्रिय, अन्तःकरण और मन ये एकार्थवाची शब्द हैं मन दो प्रकार का है- द्रव्यमन व भावमन । जो हृदय स्थान में आठ पाँखुड़ी के कमल के आकार वाला है तथा आंगोपांग नामकर्म के उदय से मनोवर्गणा के स्कन्ध से उत्पन्न हुआ है उसे द्रव्य मन कहते हैं वह अत्यन्त सूक्ष्म और इन्द्रिय-अगोचर है। वीर्यान्तराय और नोइन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम की अपेक्षा होने वाली आत्मा की विशुद्धि को भावमन कहते हैं भावमन ज्ञानस्वरूप है । वह लब्धि और उपयोग लक्षण वाला है। इन्द्रियाँ नियत देश में स्थित पदार्थों को विषय करती हैं और कालान्तर में अवस्थित रहती है किन्तु मन मात्र प्रतिनियत देश में स्थित पदार्थ को ही विषय नहीं करता तथा कालान्तर में अवस्थित भी नहीं रहता इसलिए इसे ईषत् इन्द्रिय अर्थात् अनिन्द्रिय माना गया है। इसे गुण और दोषों के विचार और स्मरण करने आदि कार्यों में इन्द्रियों की सहायता नहीं लेनी पड़ती तथा चक्षु आदि इन्द्रियों के समान इसकी बाहर में उपलब्धि नहीं होती इसलिए यह अन्तःकरण कहलाता है।