नामकर्म
जिस कर्म के उदय से जीव देव, नारकी, तिर्यंच या मनुष्य कहलाता है वह नामकर्म है। अथवा जो नाना प्रकार के शरीर की रचना करता है वह नामकर्म है। नामकर्म के तेरानवे भेद-प्रभेद हैं । गति, जाति, शरीर, अंगोपांग संस्थान, संहनन आदि नामकर्म के भेद हैं। नामकर्म की प्रकृति इस प्रकार है। चार गति, पाँच जाति, पाँच शरीर, पाँच बंधन, पाँच संघात, छः संस्थान, तीन अंगोपांग, छः संहनन, पाँच वर्ण, दो गंध, पाँच रस, आठ स्पर्श, चार आनुपूर्वी, दो विहायोगति, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छवास, आतप, उद्योत, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक शरीर, साधारण शरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, तीर्थंकर |