व्रतों को धारण न करना अविरत है । या निर्विकार स्वसंवेदन से विपरीत अव्रत रूप विकारी परिणाम का नाम अविरति है। पाँच स्थावर और त्रस इन छह प्रकार के जीवों की दया न करने से और पाँच इन्द्रिय व मन …
प्रत्येक अवयवी अनेक अवयवों में अविष्वग्भाव रूप से अर्थात् अभेद रूप से स्वीकार किया गया है।