अविशेषसमा
विवक्षित पक्ष और दृष्टान्त व्यक्तियों में एक धर्म की उत्पत्ति हो जाने से अविशेष हो जाने पर पुनः सद्भाव की होने से सम्पूर्ण वस्तुओं के अविशेष का प्रसंग देने से प्रतिवादी द्वारा अविशेषसम प्रतिषेध उठाया जाता है। जिसे कि प्रयत्नान्तरोयकत्वरूप एक धर्म शब्द व घट दोनों में घटित हो जाने से दोनों का विशेषरहित- पना स्वीकार कर चुकने पर, पुनः प्रतिवादी द्वारा सम्पूर्ण वस्तुओं के समान हो रहे सत्त्व की घटना से सबको अन्तरहित या नित्यपने का प्रसंग देना अविशेषसमा है।