आत्म द्रव्य अवक्तव्य नय से पूर्व के बाण की भांति ही युगपत् स्व और पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव से अवक्तव्य है। जैसे कि द्रव्य की अपेक्षा लोहमयी, क्षेत्र की अपेक्षा प्रत्यंचा, धनुष के मध्य में निहित, काल की अपेक्षा …
बंध का अभाव होने के बाद पुनः बाँधता है, यह अवक्तव्य बंध है। सामान्यपने से भंग विवक्षा को किये बिना अवक्तव्य बंध है।
शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने …
वे एकान्तवादी जन उस स्वघाती दोष को दूर करने में असमर्थ है आपसे द्वेष रखते आत्मघाती है और बालक है, उन्होंने तत्त्व की इस अवक्तता को आश्रित किया । हे भगवन् आपकी युक्ति की अभिलाप्यता के जो दोषी हैं उन …
द्वादशांग के साथ अंग- बाह्य का अध्ययन करके जो दृढ़ सम्यग्दर्शन होता है उसे अवगाढ़ सम्यग्दर्शन कहते हैं ।