अवक्तव्य भंग
शब्द में वस्तु के तुल्य बल वाले दो धर्मों का मुख्य रूप से युगपत् कथन करने की शक्यता न होने से या परस्पर शब्द प्रतिबंध होने से निर्गुणत्व का प्रसंग होने से तथा विवक्षित उभय धर्मों का प्रतिपादन न होने से वस्तु अवक्तव्य है जब दो प्रतियोगी गुणों के द्वारा अवधारण रूप से युगपत् एक काल में एक शब्द से समस्त वस्तु के कहने की इच्छा होती है तो वस्तु अवक्तव्य हो जाती है क्योंकि वैसा शब्द और अर्थ नहीं है, गुणों के युगपत् भाव का अर्थ है कालादि की दृष्टि से अभेदवृत्ति । प्रथकभूत द्रव्य और मिलित द्रव्य और पर्याय इनका आश्रय करके कथंचित घट अवक्तव्य है।