जो साधु कई दिनों तक आहार प्राप्त न होने पर अलाभ की स्थिति में भी समता पूर्वक ध्यान अध्ययन में लीन रहते हैं और अलाभ की स्थिति को कर्मनिर्जरा का कारण मानकर संतोष धारण करते हैं उनके यह अलाभ – …
कर्ममल कलंकों को धोकर आत्मा का आत्मा में ही अवस्थान लोकोत्तर शुचित्व या अलौकिक शुचि है। इसके साधन सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रयधारी साधुजन तथा उनसे अधिष्ठित निर्वाण भूमि आदि मोक्ष प्राप्ति के उपाय होने से शुचि है। काल, अग्नि, भष्म, मृतिका, …