जिस कर्म के उदय में देश, काल आदि के प्रति उत्सुकता नहीं होती है उसे अरति कहते हैं । यह एक कर्म प्रकृति है। इसे नो-कषाय कहा गया है।
जो संयत मुनि इन्द्रिय के इष्ट विषयों के प्रति निरुत्सुक है जो गीत, नृत्य, वादित्र आदि से रहित शून्य घर, मन्दिर, वृक्ष की कोटर, शिलातल आदि में स्वाध्याय, ध्यान और भावना में लीन हैं। पहले देखे हुए, सुने हुए या …