विनयपूर्वक मुनिजनों या पूज्य पुरूषों के सम्मुख जाना अभ्युत्थान है।
जो अर्थ सब शास्त्रों में अविरुद्धता से माना गया है उसे सर्वतन्त्र सिद्धान्त कहते हैं । अर्थात् जिस बात को सर्वशास्त्रकार मानते हैं, जैसे ज्ञान आदि पाँच इन्द्रियाँ, गन्ध आदि उनके विषय, पृथ्वी आदि पाँच भूत, प्रमाण द्वारा पदार्थों का …