अभ्युपगमसिद्धान्त
जो अर्थ सब शास्त्रों में अविरुद्धता से माना गया है उसे सर्वतन्त्र सिद्धान्त कहते हैं । अर्थात् जिस बात को सर्वशास्त्रकार मानते हैं, जैसे ज्ञान आदि पाँच इन्द्रियाँ, गन्ध आदि उनके विषय, पृथ्वी आदि पाँच भूत, प्रमाण द्वारा पदार्थों का ग्रहण करना इत्यादि सभी शास्त्रकार मानते हैं। जो बात एक शास्त्र में सिद्ध हो और दूसरे में असिद्ध हो उसे प्रतितन्त्र सिद्धान्त कहते हैं। जिस अर्थ के सिद्ध होने से अन्य अर्थ भी नियम से सिद्ध हों उसे अधिकरण सिद्धान्त कहते हैं। जैसे देह और इन्द्रियों से भिन्न कोई जानने वाला है उसे आत्मा कहते हैं। बिना परीक्षा किए किसी पदार्थ को मानकर उस पदार्थ की विशेष परीक्षा करने को अभ्युपगम सिद्धान्त कहते हैं।