जो व्याख्यान किए जाने योग्य सूत्र कहे गए हैं वही अभिधान अर्थात् वाचक या प्रतिपादक कहलाते हैं।
जो संज्ञा शब्द प्रवृत्त होकर अपने आप को जतलाता है, वह अभिधाननिबंधननाम कहा जाता है।
चौथे तीर्थंकर । इक्ष्वाकुवंश में राजा स्वयंवर और रानी सिद्धार्था के यहां उत्पन्न हुए। इनकी आयु पचास लाख वर्ष पूर्व और ऊंचाई तीन सौ पचास धनुष थी। समस्त शुभ लक्षणों से युक्त शरीर स्वर्ण के समान आभावान था। राज्य करते …