अभिनन्दन नाथ
चौथे तीर्थंकर । इक्ष्वाकुवंश में राजा स्वयंवर और रानी सिद्धार्था के यहां उत्पन्न हुए। इनकी आयु पचास लाख वर्ष पूर्व और ऊंचाई तीन सौ पचास धनुष थी। समस्त शुभ लक्षणों से युक्त शरीर स्वर्ण के समान आभावान था। राज्य करते हुए साढ़े छत्तीस लाख वर्ष पूर्व काल बीत जाने पर एक दिन अचानक मेघों का बिखरना देखकर इन्हें वैराग्य हो गया और इन्होंने जिनदीक्षा ले ली । अठारह वर्ष की मौन तपस्या के उपरांत इन्हें केवलज्ञान हुआ। इनके समवसरण में एक सौ तीन गणधर, तीन लाख मुनि, तीन लाख तीस हजार छ: सौ आर्यिकाएँ, तीन लाख श्रावक और पांच लाख श्राविकाएँ थीं । इन्होंने सम्मेदशिखर से मोक्ष प्राप्त किया।