जहाँ सम-समयवर्ती जीवों के परिणाम समान और असमान (विलक्षण) दोनों प्रकार के और भिन्न- समयवर्ती जीवों में परिणामों की अपेक्षा कभी सदृश्य नहीं पाया जाता उसे अपूर्वकरण गुणस्थान कहते हैं। इस गुणस्थान में विभिन्न समय स्थित जीवों के पूर्व में …
जो पहले से (कृष्टि) प्राप्त न हो बल्कि नवीन की जाये उसे अपूर्वकृष्टि कहते हैं। कृष्टिकरण काल के प्रथम समय जो कृष्टियाँ की गयीं वे तो पूर्व कृष्टि हैं परन्तु द्वितीय समय में जो कृष्टि की गयीं वे अपूर्वकृष्टि हैं …
चारित्रमोह की क्षपणा विधि में सभी प्रकृतियों के द्रव्य में से कुछ निषेकों के अनुभाग को अपकर्षण द्वारा घटाकर अनन्त गुणा घटता करै है। अर्थात् उनके योग पूर्व स्पर्धकों जो सर्वजघन्य अनुभाग के स्पर्धक संसार अवस्था विषै पहिले थे। उनसे …
जो पदार्थ पूर्व में किसी भी प्रमाण द्वारा निश्चित न हुआ हो उसे अपूर्वार्थ कहते हैं तथा यदि किसी प्रमाण से निर्णीत होने के पश्चात् पुनः उसमें संशय, विपर्यय अथवा अनध्यवसाय हो जाये तो उसे भी अपूर्वार्थ समझना।