संसिद्धि, राध, सिद्ध, साधित और अपराधित ये एकार्थवाची शब्द है। जो आत्मा अपगतराध अर्थात् राध से रहित है वह आत्मा अपराध है जो पर द्रव्य को ग्रहण करता है वह अपराधी है इसीलिए बंध में पड़ता है। और जो स्वद्रव्य …
जो वेश्या व्यभिचारिणी होने से दूसरे पुरुषों के पास आती जाती रहती है और जिसका कोई पुरुष स्वामी नहीं है वह अपरिग्रहीता कहलाती है।