अपराध
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संसिद्धि, राध, सिद्ध, साधित और अपराधित ये एकार्थवाची शब्द है। जो आत्मा अपगतराध अर्थात् राध से रहित है वह आत्मा अपराध है जो पर द्रव्य को ग्रहण करता है वह अपराधी है इसीलिए बंध में पड़ता है। और जो स्वद्रव्य में ही समृद्ध है ऐसा यति निरपराधी है इसीलिए बन्ध नहीं है।
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