जो ठहरते हुए जीव और पुद्गल को ठहरने में सहायक होता है उसे अधर्म द्रव्य कहते हैं । यह द्रव्य समूचे लोक में व्याप्त है। यह अचेतन और अरूपी है। इसका कार्य वृक्ष की छाया की तरह है जो राहगीर …
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