जिस ऋद्धि के प्रभाव से साधु अग्निशिखा में स्थित जीवों की विराधना के बिना उन विचित्र अग्निशिखाओं पर से गमन करने में समर्थ होता है, वह अग्निचारण ऋद्धि है।
समस्त अघातिया कर्मों का भी नाशकर विनश्वर शरीर से सदा के लिए नाता तुड़ाकर उत्कृष्ट व अविनश्वर सिद्ध पद को प्राप्त हो, लोकशिखर पर अष्टम भूमि में जाकर निवास करना अग्रनिवृत्ति क्रिया है।
जघन्य निवृत्ति के अंतिम निषेक की अग्र संज्ञा है। उसकी स्थिति जघन्य अग्रस्थिति है। जघन्य निवृत्ति (जघन्य आयु बंध) यह उक्त कथन का तात्पर्य है
जो द्वादशांग के अग्र अर्थात् प्रधान पदार्थ को प्रतिपादित करता है वह अग्रायणी पूर्व है। इसके अन्तर्गत क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्व – समय का विषय विवेचित किया जाता है।