पद्मद्रह के तट पर ईशान आदि चार विदिशाओं में वैश्रवण, श्रीनिचय, क्षुद्रहिमवान् व ऐरावत ये तथा उत्तर दिशा में श्रीसंचय ये पाँच कूट हैं। उसके जल में उत्तर आदि आठ दिशाओं में जिनकूट, श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, शिखरी व उत्पल …
आचारांग आदि बारह प्रकार का (द्वादशांग) जो श्रुतज्ञान है उसे अंग प्रविष्ट कहते हैं। आचारांग, सूत्रकृत्रांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञातृ-धर्मकथा, उपासकाध्ययन अन्तकृद्दशांग, अनुन्तरोपपा- दिक दशांग, प्रश्न व्याकरण, विपाकसूत्र और दृष्टिवाद ये अंग प्रविष्ट के बारह भेद हैं। ‘दृष्टिवाद’ नामक बारहवें …