अस्थिर
जिस कर्म के उदय से रसादिको का आगे की धातुओं के स्वरूप से परिणमन होता है वह अस्थिर नाम कर्म है। जिस कर्म के उदय से रसादि धातुओं का अपने स्वरूप से कितने ही काल तक अवस्थान होता है, वह स्थिरनाम कर्म का उदय है। जिसके उदय से दुष्कर उपवास आदि तप करने पर भी अंगोपांग आदि स्थिर बने रहते हैं और कृश नहीं होते वह स्थिर नामकर्म है। और एक उपवास से या साधारण शीत, उष्ण आदि से ही शरीर में अस्थिरता आ जाए, कृश हो जाए वह अस्थिर नामकर्म है।