अवग्रह
इन्द्रिय और पदार्थ का संबंध होने के उपरान्त जो पदार्थ का प्रथम ग्रहण या ज्ञान होता है वह अवग्रह कहलाता है। जैसे- आँख के द्वारा ‘यह सफेद है’ ऐसा ज्ञान होना । अवग्रह दो प्रकार का है व्यंजनावग्रह और अर्थावग्रह | व्यक्त ग्रहण से पहले-पहले व्यंजनावग्रह होता है और व्यक्त ग्रहण का नाम अर्थावग्रह है। जैसे- माटी का नया घड़ा जल की दो तीन बूंदें सींचने पर गीला नहीं होता और पुनःपुनः सींचने पर धीरे-धीरे गीला हो जाता है। इसी प्रकार श्रोत्र आदि इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण किए गए शब्द आदि पहले व्यक्त सहसा नहीं होते, किन्तु पुनः पुनः ग्रहण होने पर व्यक्त हो जाते हैं। व्यंजनावग्रह या अव्यक्त अवग्रह से ईहा अवाय आदि नहीं हो पाते और न ही अव्यक्त अवग्रह चक्षु इन्द्रिय व मन के द्वारा हो पाता है वह शेष चार इन्द्रियों के द्वारा ही होता है। अर्थावग्रह पाँचों इन्द्रियों और मन के द्वारा होता है।