अपूर्वकृष्टि
जो पहले से (कृष्टि) प्राप्त न हो बल्कि नवीन की जाये उसे अपूर्वकृष्टि कहते हैं। कृष्टिकरण काल के प्रथम समय जो कृष्टियाँ की गयीं वे तो पूर्व कृष्टि हैं परन्तु द्वितीय समय में जो कृष्टि की गयीं वे अपूर्वकृष्टि हैं क्योंकि इनमें प्राप्त जो उत्कृष्ट अनुभाग है वे पूर्व कृष्टियों के जघन्य अनुभाग से भी अनन्तगुना घटता है। अपूर्व अनुभाग के कारण इसका नाम अपूर्व – कृष्टि है।