अनुभाग
ज्ञानावरणादि कर्मों का जो परिणाम जनित शुभ अथवा अशुभ रस है, वह अनुभाग बंध है। शुभ प्रकृतियों का अनुभाग बंध विशुद्ध परिणामों से उत्कृष्ट होता है। अशुभ प्रकृतियों का अनुभाग बंध संक्लेश परिणामों से उत्कृष्ट होता है। इससे विपरीत अर्थात् प्रकृति का विशुद्धि से जघन्य अनुभाग होता हे । शुभ प्रकृतियों के अनुभाग गुड़, खाँड, शक्कर और अमृत के तुल्य उत्तरोत्तर मिष्ट होते हैं। पाप प्रकृतियों का अनुभाग निंब, कांजीर, विष और हलाहल के समान उत्तरोत्तर कटुक होता है। केवलज्ञान, केवलदर्शन, सम्यक्चारित्र और वीर्य रूप जो अनेक भेद भिन्न जीव गुण है, उनके उक्त कर्म घातक होते हैं, इसलिए वे घातिया कर्म कहलाते हैं, जो चार हैं- ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय। शेष कर्मों को घातिया नहीं कहते क्योंकि उनके जीव के गुणों का विनाश करने की शक्ति नहीं होती घातिया कर्मों की जो अनुभाग शक्ति लता, दारू, अस्थि और शैल समान कषाय आदि कही गयी है, उनमें दारू तुल्य से ऊपर अस्थि और शैल में तो सर्वघाति शक्ति पायी जाती है, उससे नीचे लता तुल्य भाग में देशघाति शक्ति है। मतिज्ञानावरण आदि चार चक्षुदर्शनावरणी आदि तीन, अन्तराय की पाँच, संज्वलन चतुष्टय और पुरुषभेद ये 17 प्रकृतियाँ लतारूप, अस्थि और शैल रूप चार प्रकार के भावों से परिणत हैं। मतिज्ञानावरण आदि देशघाति है और केवलज्ञानवरण सर्वघाति है। सम्यक प्रकृति देश घाति है, मिथ्यात्व और सम्यकमिथ्यात्व सर्वघाति है।