अनादि नय
परम भाव ग्राहक शुद्ध निश्चय नय को ग्रहण करके सम्पूर्ण कर्मों के क्षय से उत्पन्न और चरम शरीरी के आकार रूप पर्याय से परिणत जो शुद्ध सिद्ध पर्याय है, उसको विषय करने वाला अर्थात् सत् समझने वाला सादि नित्य पर्यायार्थिक नय है । भरत आदि क्षेत्र, हिमवान आदि पर्वत, पद्म आदि सरोवर, सुदर्शन आदि मेरु, लवण व कालोधि आदि समुद्र, इनको मध्यरूप या केन्द्ररूप करके स्थित असंख्यात द्वीप समुद्र, नरक पटल, भवनवासी, व्यंतर देवों के विमान, चन्द्र व सूर्य मण्डल आदि ज्योतिषी देवों के विमान सौधर्मकल्प आदि स्वर्गों के पटल यथायोग्य स्थानों में परिणत अकृत्रिम चैत्य चैत्यालय, मोक्षशिला, वृहत वातवलय तथा इन सबको आदि लेकर अन्य भी आश्चर्य रूप परिणत जो पुद्गल की पर्याय तथा उनके साथ परिणत लोक रूप महास्कन्ध पर्याय जो कि त्रिकाल स्थित रहते हुए अनादि निधन है। इनको विषय करने वाला अर्थात् इनकी सत्ता को स्वीकार करने वाला अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है ।