अनाकार
इन्द्रिय, मन और अवधि के द्वारा पदार्थों की विशेषता को ग्रहण न करके जो पदार्थों का ग्रहण होता उसे अनाकार कहते हैं यह अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है। पदार्थों की विशेषता न समझकर केवल सामान्य का अथवा सत्ता स्वभाव ग्रहण करता है उसे दर्शन कहते हैं। उसे निराकार कहने का यही प्रयोजन है कि ज्ञेय शब्दों की आकृति विशेष को ग्रहण नहीं करता। दर्शनोपयोग अनाकार है ।