अधिगत
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असावद्य कर्मार्य दो प्रकार के हैं- अधिगत चारितार्य और अनधिगत चारितार्य । जो बाह्य उद्देश्य के बिना स्वयं ही चारित्रमोह के उपशम से व क्षय से प्राप्त आत्मप्रसाद से चारित्र परिणाम को प्राप्त हुए है ऐसे उपशांत कषाय व क्षीणकषाय गुणस्थानवर्ती जीव अधिगत चारितार्य हैं ।
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