अंग बाह्य
गणधर देव के शिष्य – प्रशिष्यों द्वारा अल्प-आयु, अल्प- बुद्धि और अल्प-बल वाले प्राणियों के अनुग्रह के लिए द्वादशांग के आधार से रचे गए संक्षिप्त ग्रन्थों को अंग कहते हैं । अंग बाह्य के चौदह अर्थाधिकार हैं- सामायिक चतुर्विंशति स्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तरा – ध्ययन कल्प व्यवहार, कल्प्याकल्प्य, महाकल्प्य, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषिद्धिका ।