पद्मद्रह के तट पर ईशान आदि चार विदिशाओं में वैश्रवण, श्रीनिचय, क्षुद्रहिमवान् व ऐरावत ये तथा उत्तर दिशा में श्रीसंचय ये पाँच कूट हैं। उसके जल में उत्तर आदि आठ दिशाओं में जिनकूट, श्रीनिचय, वैडूर्य, अंकमय, आश्चर्य, रुचक, शिखरी व उत्पल …
नोकषाय या अकषाय का लक्षण सर्वार्थसिद्धि/8/9/385/11ईषदर्थे नञ: प्रयोगादीषत्कषायोऽकषाय इति।=यहाँ ईषत् अर्थात् किंचित् अर्थ में ‘नञ्’ का प्रयोग होने से किंचित् कषाय को अकषाय (या नोकषाय) कहते हैं। ( राजवार्तिक/8/9/3/574/10 ) ( धवला 6/1,9-1,24/46/1 ) ( धवला 13/5,5,94/359/9 ) ( गोम्मटसार कर्मकांड / जीवतत्त्व प्रदीपिका/33/28/7 )। अकषाय मार्गणा …
चारित्रमोह के दो भेद हैं−कषायवेदनीय और अकषाय वेदनीय। क्रोधादि चार कषाय हैं और हास्यादि 9 अकषाय हैं। अकषायवेदनीय के बंधयोग्य परिणाम राजवार्तिक/6/14/3/525/8उत्प्रहासादीनाभिहासित्व-कंदर्पोपहसन-बहुग्रलापोपहासशीलता हास्यवेदनीयस्य। विचित्रपरक्रीडनपरसौ-चित्यावर्जन-बहुविधपीडाभाव-देशाद्यनौत्सुक्यप्रीतिसंजननादिः रति-वेदनीयस्य। परारतिप्रादुर्भावनरतिविनाशनपापशीलसंसर्गताकुशल-क्रियाप्रोत्साहनादिः अरतिवेदनीयस्य। स्वशोकामोदशोचन-परदुःखाविष्करण-शोकप्लुताभिनंदनादिः शोकवेदनीयस्य। स्वयंभयपरिणाम-परभयोत्पादन-निर्दयत्व-त्रासनादिर्भयवेदनीयस्य। सद्धर्मापन्नचतुर्वर्णविशिष्टवर्गकुलक्रियाचारप्रवणजुगुप्सा-परिवाद-शीलत्वादिर्जुगुप्सावेदनीयस्य। प्रकृष्टक्रोधपरिणामातिमानितेर्ष्याव्यापारालीकाभिधायिता-तिसंधानपरत्व-प्रवृद्धराग-परांगनागमनादर-वामलोचनाभावाभिष्-वंगतादिः स्त्रीवेदस्य। स्तोकक्रोधजैह्य-निवृत्त्यनुत्सिक्तत्वा-लोभभावरंगनासमवायाल्परागत्व-स्वदार-संतोषेर्ष्याविशेषोपरमस्नानगंध-माल्याभरणानादरादिः पुंवेदनीयस्य। प्रचुरक्रोधमानमायालोभपरिणाम-गुह्येंद्रियव्यपरोपणस्त्रीपुंसानंगव्यसनित्व शीलव्रतगुणधारिप्रव्रज्या-श्रितप्रम(मै)थुन-परांग-नावस्कंदनरागतीव्रानाचारादिर्नपुंसकवेदनीयस्य।= उत्प्रहास, दीनतापूर्वक हँसी, कामविकार …