तीनों काल में वृतिता के आश्रित हो जाने से अहेतुसमा जाति होती है अर्थात् साध्य स्वरूप अर्थ के साधन करने में हेतु का तीनों कालों में वर्तना नहीं बनने से प्रत्यवस्थान देने पर अहेतुसमा जाति होती है। जैसे हेतु क्या …
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