जिनकी अहिंसा आदि के अनुष्ठान में प्रीति है वे सुर हैं। इनसे विपरीत असुर होते हैं। पूर्वजन्म में किए गए अतितीव्र संक्लेश के कारण संचित हुए पापकर्म के उदय से ये देव निरन्तर क्लेशयुक्त रहते हैं इसलिए संक्लिष्ट असुर भी …
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