जिस कर्म के उदय में जीव अनेक प्रकार के दुःख वेदन करता है उसे असातावेदनीय – कर्म कहते हैं ।
सातावेदनीय और असातावेदनीय इस प्रकार वेदनीय के दो ही स्वभाव हैं, क्योंकि सुख व दुखरूप वेदनाओं से भिन्न अन्य कोई वेदना पायी नहीं जाती । धवला 12/4, 2, 14, 7/481/4सादावेदणीयमसादावेदणीयमिदि दो चेव सहावा, सुहदुक्खवेयणाहिंतो पुधभूदाए अण्णिस्से वेयणाए अणुवलंभादो । सुहभेदेण दुहभेदेण च …