लोगों से भरे हुये जहाज की भाँति मिलित भाषित होता है। सो अशून्य नय है।
चारित्रमोह के क्षपणा विधि में संज्वलन, चतुष्क का अनुभाग प्रथम काण्डक का घात भए पीछे, क्रोध से लोभ पर्यन्त क्रम से उसी प्रकार घटता हो है। इसलिए क्षपक की इस स्थिति को अश्वकर्ण कहते हैं ऐसी स्थिति में लाने की …