स्वस्थान स्वस्थान, विहारवत् स्वस्थान, उपपाद आदि जीवों के विभिन्न अवस्थान हैं।
सम्यक्त्वमोहनीय की अष्टवर्ष स्थिति करने के समयतें लगाय उपरि सर्व निविषै उदयादि अवस्थित गुणश्रेणी है। अवस्थित गुणश्रेणी आरम्भ करने का प्रथम समय, द्वितीयादि समय गुणश्रेणी जेता का तेता रहैं। ज्यूँ-ज्यूँ एक–एक समय व्यतीत होय त्यूँ-त्यूँ गुणश्रेणी आयाम के अनन्तरिवर्ती ऐसा …
वर्तमान समय में जिन स्थितियों को बांधता है उन्हें अनन्तर अतिक्रान्त समय में घटी हुयी या बड़ी हुई बांधी गयी स्थिति से उतनी ही बांधता है । वह अवस्थित बंध है ।