जैसे कीचड़ में फँसे हुए और मार्गभ्रष्ट पथिक को अवसन्न कहते हैं, वैसे ही ज्ञान और आचरण से भ्रष्ट मुनि को अवसन्न कहते हैं ।
मोक्षमार्ग में स्थित मुनियों का संघ जिसने छोड़ दिया है, ऐसे पार्श्वस्थ, कुशील, स्वच्छन्द व संसक्त साधु अवसन्न कहलाते हैं। उनका मरण अवसन्न मरण है।