रचना का नाम निवृत्ति है वह दो प्रकार की होती है- बाह्य और अंतरंग। आभ्यंतर उत्सेधांगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण और अप्रतिनियत चक्षु आदि इन्द्रियों के आकाररूप से अवस्थित शुद्धात्म प्रदेशों की रचना को अभ्यंतर निवृत्ति कहते हैं और इन्द्रिय …
क्रोध आदि के कारण दूसरों में अविद्यमान दोषों को प्रगट करना अभ्याख्यान कहलाता है।