अभोक्तृत्त्व नय से केवल साक्षी ही है। हितकारी-अहितकारी अन्न को खाने वाले रोगी को देखने वाले वैद्य की भाँति है।
समस्त कर्मों से किए गए, ज्ञातृत्वभाव से भिन्न परिणामों के अनुभव (भोक्तृत्वक) उपरमस्वरूप अभोक्तृत्व शक्ति है।
यदि आहार के लिए जाते हुए साधु का चाण्डाल आदि अपवित्र जनों के घर में प्रवेश हो जाता है तो यह अभोज्य गृहप्रवेशन नामक अन्तराय है।