यह मेरा है इस प्रकार के भाव को अभिनिवेश कहते हैं । शाश्वत रूप से अनात्मीय और कर्मजनित स्वशरीर आदि द्रव्यों में आत्मीयपने का भाव अभिनिवेश कहलाता है। जैसे यह शरीर मेरा है।
ग्यारह अंगों का अध्ययन पूर्ण होने के उपरांत विद्यानुवाद नामक दसवें पूर्व को पढ़ते समय महाविद्याओं के पाँच सौ और लघु – विद्याओं के सात सौ देवता आकर सेवक की तरह उपस्थित हो जाते हैं। उस समय किसी भी प्रलोभन …
मंत्र प्रयोग करना कौतुककारक अकाल वृष्टि आदि करना तथा ऋद्धि रस, सात गारवयुक्त अन्य इसी प्रकार के कार्य करना मुनि के लिये अभियोगी भावना कहलाती है।
जिस प्रकार यहाँ लोग वाहनादि व्यापार करते हैं उसी प्रकार देवों में अभियोग्य नामक देव वाहनादि रूप से कार्य करते हैं।