अध्रुव प्रकृतियाँ दो प्रकार की होती हैं- निष्प्रतिपक्ष और सप्रतिपक्ष। परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, चारों आयु तीर्थंकर और आहारकद्विक ये ग्यारह अध्रुव निष्प्रतिपक्ष प्रकृतियाँ हैं। साता वेदनीय, तीनों वेद, हास्यादि चार (हास्य, रति, अरति, शोक), एकेन्द्रियादि पाँच जातियाँ, छ: संस्थान, …
अनुपलब्धि को अप्रतिपत्ति कहते है। जिसकी अप्रतिपत्ति है उसका अभाव मान लिया जाता है।
देशावधि में आठ भेद हैं, वर्धमान, यमान, अवस्थित, अनवस्थित, अनुगामी, अननुगामी, और प्रतिपाती । हीयमान और प्रतिपाती को छोड़कर शेष छः भेद परमा– वधि में हैं। अवस्थित, अनुगामी, अननुगामी और अप्रतिपाती ये चार भेद सर्वावधि में हैं। जघन्य आदि तीनों …
जब तक आत्मा की शरीरादि में यह मैं हूँ ऐसी मान्यता रहती है तब तक वह आत्मा अप्रतिबुद्ध कहलाता है ।