पश्चिम दिशा अपाच्य कहते है ।
शुद्धानन्त शक्तिमय ज्ञानरूप से परिणमित होने के समय पूर्व में प्रवर्तमान विकलज्ञानस्वभाव का नाश होने पर भी सहज ज्ञानस्वभाव से स्वयं ही ध्रुवता का अवलम्बन करने (आत्मा) अपादानता को धारण करता है।
जो (द्रव्य) तीनों कालों में अपने रूप को छोड़ता हुआ और नहीं छोड़ता हुआ पूर्व रूप से और अपूर्व रूप वर्त रहा है वह अपादान कारण है, ऐसा जानना चाहिए। जो अपने स्वरूप को छोड़ता है और उसे सर्वथा नहीं …
उत्पाद व्यय से आलिंगित भाव का अपाय ( हानि या नाश होने) हानि को प्राप्त न होने वाली ध्रुवत्वमयी अपादान शक्ति है।