compassion अनुग्रह से दयार्द्र चित्तवाले के दूसरे की पीड़ा को अपनी ही मानने का जो भाव होता है, उसे अनुकंपा कहते हैं। पंचास्तिकाय / / मूल या टीका गाथा 137/201 तिसिदं बुभुविखदं वा दुहिदं दट्ठूण जो दूदुहिदमणो। पडिवज्जदि तं किवया …
1. सर्व प्राणी मात्र में मैत्री भाव होना अनुकम्पा है । 2. दया से द्रवित होकर दूसरे की पीड़ा को अपना ही मानने का जो भाव होता है, उसे अनुकम्पा कहते हैं। यह सम्यग्दृष्टि का एक गुण है।