लिंग तथा भग या योनि अंग है। इससे दूसरे स्थान में क्रीड़ा या केलि सो अयोग्य अंग से क्रीड़ा है अर्थात् कामसेवन के अंगों को छोड़कर या अन्य रीति से क्रीड़ा करना सो अनंगक्रीड़ा है।
जीवों की कषायों की विचित्रता सामान्य बुद्धि का विषय नहीं है। आगम में वे कषाय अनंतानुबंधी आदि चार प्रकार की बतायी गयी हैं। इन चारों के निमित्त-भूत कर्म भी इन्हीं नाम वाले हैं। यह वासना रूप होती हैं व्यक्त रूप …