चक्षु इन्द्रिय के अलावा शेष चार इन्द्रियों एवं मन के द्वारा जो सामान्य प्रतिभास होता है, उसे अचक्षुदर्शन जानना चाहिए।
जो चक्षु इन्द्रिय के सिवाय शेष इन्द्रियों तथा मन से होने वाले ज्ञान के पूर्ववर्ती सामान्य प्रतिभाष (दर्शन) को प्रकट न होने दे उसे अचक्षुदर्शनावरण कहते हैं।
राजा, मंत्री आदि का भय दिखाकर यदि साधु आहार प्राप्त करे तो यह अच्छेद्य नाम का दोष है।