1. लक्षण, गुण और अक्ष ये सब एकार्थवाची शब्द हैं। 2. श्रुतज्ञान के आचारादि रूप एक-एक अवयव को अक्ष कहते हैं ।
मनुष्य व तिर्यंचों के विभिन्न अंग या उपांगों को देखकर या छूकर शुभ-अशुभ और सुख-दुख आदि का ज्ञान कर लेना अक्षर निमित्तज्ञान कहलाता है।
पर्याय समास ज्ञान के बाद अक्षर समास ज्ञान प्रारंभ होता है उसके ऊपर पदज्ञान तक एक एक अक्षर की वृद्धि होती है इस वृद्धि को अक्षर समास कहते हैं ।
श्रुत ज्ञान के अनेक विकल्पों में एक विकल्प हृस्व अक्षर रूप भी है इस विकल्प में ध्रुव की अपेक्षा अनन्तानंत पुद्गल परमाणुओं से निष्पन्न स्कन्ध का संचय होता है।